Monday, May 26, 2008

जब कभी

जब कभी काले बादल छा जाते है तो नज़र में क़ैद कर लेती हूँ
उन छोटी छोटी बूंदों के साथ में भी बिन मौसम बरस लेती हूँ

जब कभी माज़ी दबे पाँव आजाता है तो साथ चल लेती हूँ
उन अब्तर यादों को फिर यक्जा करके अंश्को से पिरो लेती हूँ

जब कभी किसी दुश्मन के ज़बान पर तेरा ज़िक्र सुन लेती हूँ
उस हरीफ़ को अपना सबसे अज़ीज़ दोस्त समझ लेती हूँ

जब कभी पुरानी किताबों के पन्ने में तेरे नाम देख लेती हूँ
उस सफ्हे को कितने बार पढ़ के हिफ्ज़ कर लेती हूँ

जब कभी उदासी में तेरे तसव्वुर को खुद में समेत लेती हूँ
उन सदियों के हजारों शिख्वे उसी एक खुदा से कर लेती हूँ

G©गज़ला May 2008

word meanings
माज़ी - the past
अब्तर -scattered
यक्जा- to gather
हरीफ़ - enemy
सफ्हे - page
हिफ्ज़ - to memorise


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