जब कभी
जब कभी काले बादल छा जाते है तो नज़र में क़ैद कर लेती हूँ
उन छोटी छोटी बूंदों के साथ में भी बिन मौसम बरस लेती हूँ
जब कभी माज़ी दबे पाँव आजाता है तो साथ चल लेती हूँ
उन अब्तर यादों को फिर यक्जा करके अंश्को से पिरो लेती हूँ
जब कभी किसी दुश्मन के ज़बान पर तेरा ज़िक्र सुन लेती हूँ
उस हरीफ़ को अपना सबसे अज़ीज़ दोस्त समझ लेती हूँ
जब कभी पुरानी किताबों के पन्ने में तेरे नाम देख लेती हूँ
उस सफ्हे को कितने बार पढ़ के हिफ्ज़ कर लेती हूँ
जब कभी उदासी में तेरे तसव्वुर को खुद में समेत लेती हूँ
उन सदियों के हजारों शिख्वे उसी एक खुदा से कर लेती हूँ
G©गज़ला May 2008
word meanings
माज़ी - the past
अब्तर -scattered
यक्जा- to gather
हरीफ़ - enemy
सफ्हे - page
हिफ्ज़ - to memorise